प्रलेख परीक्षण

प्रलेख परीक्षण सफेदपोश अपराधों एवं वित्तिय अपराधों की वैज्ञानिक विवेचना करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आजकल आधुनिक उपकरणों एवं अपराध करने के तरीकों में अनेक बदलाव होने से प्रलेख परीक्षण की उपयोगिता और भी बढ जाती है। अपराध अनेक प्रकार के होते है जिनमें प्रलेख परीक्षण से निम्न लिखित अपराधों में वैज्ञानिक तरीके से विवेचना करने में सहायता प्राप्त की जा सकती है।

अपराध के प्रकार-

1- ब्लैक कालर क्राईम :- यह अपराध सामान्यतयाः न्यायाधीशों, वकीलो तथा धार्मिक भवनो मे रहने वाले जैसे कि मौलवी/पादरी/पुजारी द्वारा किये जाते है।
2- ग्रीन कालर क्राईम :- यह आपराध समुन्द्र मे विचरण करने वाले लोगो तथा किसानों द्वारा किये जाते है। समुन्द्री लोगो द्वारा उच्च समुन्द्री व्यापार, वीमा एवं उससे सम्बन्धित अन्य क्षेत्रो के लिए यह अपराध किये जाते है। किसानो द्वारा फसल वीमा, विधुत, जल एवं छूट प्रदान करने के लिए इस प्रकार के अपराध किये जाते है।
3- ब्लू कालर क्राईम ;- यह अपराध साधारणतया किये जाने वाले अपराध है। जैसे कि बलात्कार, आगजनी, हत्या तथा अन्य अपराध जो गलियों और घरों मे किये जाते है, इस श्रेणी मे आते है।
4- ह्वाईट कालर क्राईम – यह अपराध गलियों एवं मकानो मे न हो कर पढे लिखे सफेद पोश व्यक्तियों द्वारा किये जाते है
इस प्रकार की अनेक समस्याओ का समाधान प्रलेख परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा किया जा सकता है। जैसे- विवादित लेख या हस्ताक्षरो की पहचान, संदिग्ध व्यक्तियों के नमूने तथा रोजमर्रा मे लिखे गये स्वीकृत लेख तथा हस्ताक्षरों के साथ तुलनात्मक परीक्षण करके किया जाता है ।

प्रलेखः- प्रलेख कोई भी लिखने योग्य वस्तु अथवा जगह हो सकती है जिस पर लेख/चिन्ह हो और जिसके द्वारा किसी भी व्यक्ति को कोई अर्थ समझ मे आ जाये, दस्तावेज कहा जा सकता है। जैसे पत्र, जो एक साधारण खत, गुमनाम पत्र, धमकी भरा पत्र या आत्महत्या का पत्र हो सकता है। कभी-कभी इसमें गुप्त संदेश या छिपी हुई लिखावट भी होती है।
वित्तिय प्रलेख जिनमे रसीद, मनी आर्डर का फार्म, चैक, टिकट, करेंसी नोट, प्रोनोट, हिसाब की कापियां, बिल या टेन्डर फार्म तथा भुगतान आदेश होते है। किसी कार्यालय मे रिकार्ड मे यदि हेरा फेरी की गई हो तो वह भी संदेहास्पद प्रलेख हो जाता है।
परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं जिनमें कुछ अथवा सभी प्रश्नों का उत्तर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिख दिया जाता है, यह भी संदेहास्पद प्रलेख कहलाते है। सम्पत्ति के सम्बन्ध में आजकल वसीयते भी फर्जी बनाई जाती है जिसमें किसी के हस्ताक्षर, लेख किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बनाये जाते है। कभी-कभी गवाह के हस्ताक्षर भी ऐसी वसीयतों मे फर्जी बनाये जाते है।
प्रलेखों से सम्बन्धित अनेक प्रकार की समस्याएं दैनिक जीवन में देखने को मिलती हैं जैसे- 1. हस्तलेख की पहचान, 2. टाईप लिपि की पहचान 3. लिखने की समाग्री का वैज्ञानिक परीक्षण, 4. मुहरे, टिकट और कटे-फटे सिरों का भौतिक मिलान, 5. जले हुए कागजातो मे लिखे लेख की पहचान, 6. गुप्त लेखो को विकसित करके पढने योग्य बनाना इत्यादि।
प्रलेख परीक्षण मे हस्तलेख की पहचान करना मुख्य कार्य है जिसमें निम्न प्रकार से प्रश्न पूछे जा सकते है-

  1. क्या हस्ताक्षर संदिग्ध व्यक्ति द्वारा लिखे गये है ?
  2. क्या हस्ताक्षर वादी द्वारा लिखे गये है ?
  3. क्या हस्ताक्षर ट्रेसिगं द्वारा बनाये गये है ?
  4. क्या हस्ताक्षर अन्य स्थान से लिफ्ट किये गये है ?
    गुमनाम पत्रों के बारे मे निम्न लिखित जानकारी प्राप्त की जा सकती हैः-
  5. गुमनाम पत्र कहां से आया है ?
  6. पत्र लिखने वाले के साक्षरता का स्तर क्या हो सकता है ?
  7. लिखने वाले का व्यवसाय क्या हो सकता है ?
  8. विभिन्न गुमनाम पत्र क्या एक ही व्यक्ति द्वारा लिखे गये है ?
  9. क्या गुमनाम पत्र संदिग्ध व्यक्तियों में से किसी एक द्वारा लिखा गया है
    विवेचनाधिकारी द्वारा संदेहास्पद प्रलेखों का खोजना बहुत कठिन कार्य नही है। प्रायः पीडित व्यक्ति अथवा प्रभावित संस्था द्वारा खुद ही इन्हे विवेचनाधिकारी को हस्तगत कराये जाते हैं । परन्तु कभी-कभी बडे स्ंस्थानों या सरकारी कार्यालयों मे संदिग्ध प्रलेखो को ढूढना काफी कठिन होता है।
    पीडित व्यक्ति द्वारा गुमनाम पत्र, जाली प्रोनोट, चैक, मनीआर्डर फार्म, रसीदे, पत्रवली व उनमे उपलब्ध टिप्पणियां, परमिट, राशन कार्ड, करेंसी नोट, पासपोर्ट, आदेश, पहचान पत्र, प्रशस्ति पत्र, सिफारिशी पत्र जैसे प्रलेख उपलब्ध कराये जाते है।
    अपराधियों द्वारा भी जाली वसीयते, हिसाब की कापिया, परमिट, राशन कार्ड, पासपोर्ट, करेंसीनोट, पहचान पत्र, ऐतिहासिक पत्र, पावर आफ एटार्नी आदि इस्तेमाल किए जाते है। विभिन्न कार्यालयो द्वारा असली या नकली अधिकार पत्र, रिकार्ड, परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाए, लेखा सम्बन्धि दस्तावेज, उपस्थिति पंजिका तथा क्रय-विक्रय पत्र प्राप्त कराये जा सकते है।

स्वीकृत लेख ; – स्वीकृत लेख वह प्रलेख होते है जो किसी भी व्यक्ति द्वारा साधारण परिस्थिति मे लेख लिखा जाता है और लिखते समय उसे यह मालूम नही होता कि इसका इस्तेमाल संदिग्ध प्रलेख से तुलना कराने मे होगा। इसमे व्यक्ति का लेख स्वभाविक होता है। स्वीकृत या प्राकृतिक लेख उस कार्यालय मे प्राप्त होते है जहां व्यक्ति कार्यरत होता है। नियुक्ति, अवकाश या ऋण के लिए प्रार्थना पत्र, वेतन, कार्यालय की टिप्पणियां, आदेश और स्वीकृत लेख के नमूने सार्वजनिक कार्यालयों जैसे- पानी, बिजली और नगर पालिका के कार्यालयो मे भी मिल सकते है। इसी प्रकार बैंको मे भुगतान किए गये चैक और नमूने के हस्ताक्षर उपलब्ध होते है। आयकर कार्यालय मे भी आयकर रिर्टन के फार्म जमा होते है। व्यक्ति के स्कूल, कालेज आदि से भी स्वीकृत लेख प्राप्त हो सकते है। वित्तीय लेन-देन, विक्रय पत्र, मुख्तारनामा, स्टाफ प्रमाण पत्र आदि भी स्वीकृत लेख हो सकते है। प्रत्येक संदिग्ध लेख/ हस्ताक्षरों के साथ स्वीकृत लेख भी भेजना आवश्यक होता है।
स्वीकृत लेख एकत्र करने के लिए उनकी वास्तविकता प्रमाणित करके तुलना हेतु भेजना चाहिए। स्वीकृत लेख/ हस्ताक्षर उसी समय या उसके आस पास के होने चाहिए जिस समय का सन्देहास्पद, प्रलेख लिखा गया है। कुछ लेख/हस्ताक्षर उसके पूर्व एवं बाद के भी होने चाहिए।

हस्तलेख/हस्ताक्षरो के नमूनेः-
किसी संदिग्ध व्यक्ति के नमूने प्राप्त करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. संदिग्ध व्यक्ति के पर्याप्त मात्रा में हस्तलेख/हस्ताक्षर के नमूने अलग-अलग पन्नो में लेनें चाहिए। यदि तुलना के लिए कम नमूने भेजे जाते हैं तो विशेषज्ञ को मत निर्धारण करने में कठिनाई हो सकती हैं। अधिक तथा अलग-अलग पन्नों में लिये गये नमूनो से यह कठिनाई दूर हो सकती है।
  2. तुलना केवल उसी वर्ग के साथ होती हैं किसी अन्य वर्ग के साथ तुलना नही की जा सकती अर्थात वह शब्द, अक्षर या शब्दो का समूह एवं अंक नमूना हस्तलेख में लिखना चाहिए जैसा कि संदिग्ध प्रलेख में उपलब्ध हों।
  3. नमूना हस्तलेख/हस्ताक्षर अलग-अलग कागजों पर धीमी गति, तेज गति एवं सामान्य गति से लिखवाना चाहिए।
  4. संदिग्ध व्यक्ति को लिखने की शैली बताकर नमूना लेख/हस्ताक्षर लिखवाना चाहिए जैसे बनावटी आर्टिस्टिक लेख/कर्सिव लिखावट, ब्लाक आदि अथवा इनका सम्मलित रूप। संदिग्ध व्यक्ति को कभी भी संदेहास्पद लेख/हस्ताक्षर नही दिखाना चाहिए। नमूना लेख हमेशा डिक्टेट करके लिखवाना चाहिए।
  5. अलग-अलग दिनो में भी नमूना हस्तलेख/हस्ताक्षर लिखवाये जा सकते है। ऐसा करने से जानबूझ कर लिखावट को बिगाडने का पता लग जाता है।
  6. नमूना लेख लिखवाते समय विराम आदि चिन्हों को नही बताना चाहिए, लेखक को खुद अपने हिसाब से लिखने देना चाहिए।
  7. हस्तलेख के नमूने लिखवाने के लिए एक ऐसे गघांश की रचना करनी चाहिए जिसमें संदिग्ध लेख के अधिकांश शब्द या अक्षर या अंक आ जाये और जिसका दस्तावेज से कोई सम्बन्ध न हो।
  8. यदि सम्भव हो सके तो संदिग्ध व्यक्ति को नमूने देने के बारे में पूर्व सूचना नही होनी चाहिए।
  9. यदि विवादित लेख/हस्ताक्षर केवल मोटे अथवा ब्लाॅक अक्षरों में लिखा गया हो तो उसके लिए जाने वाले नमूनों की मात्रा और अधिक होनी चाहिए।
  10. नमूने दण्डाधिकारी (मजिस्ट्रेट) के समक्ष लेने चाहिए और प्रत्येक कागज पर उन्हे प्रमाणित करवाना चाहिए।
  11. नमूना के कागजो पर सम्बन्धित व्यक्ति की जानकारी होनी चाहिए जैसे नाम, आयु, स्वास्थ्य एवं अन्य कारण जिससे लिखावट पर प्रभाव पड सकता है। संदिग्ध व्यक्ति के द्वारा स्वेच्छा से लिखे गये नमूना लेखों का इन्डोरसमेन्ट होना अपेक्षित होगा।
  12. विवेचना अधिकारी द्वारा भी प्रत्येक कागज पर दिनाॅंक सहित अपने हस्ताक्षर करने चाहिए।

जले प्रलेखः-
प्रलेख को किसी व्यक्ति द्वारा जानबुझकर जला देने के मामलों में तथा आगजनी और अग्नि काण्डों के मामलों में भी जले हुए दस्तावेज मिलते हैं। जले हुए प्रलेख काफी कमजोर होते हैं जिन्हे पकडने पर टूटने तथा खराब होने का डर बना रहता है। थोडी सी असावधानी होने पर जले हुए प्रलेख छोटे-छोटे टुकडों में बिखर जाते है।
जले हुए प्रलेखों को उचित आकार के गत्ते के डब्बे में नीचे रूई की परत बनाकर एकत्र करना चाहिए। जले हुए प्रलेखों को एकत्र करने से पूर्व उनमें पोली बिनाइल एसिटेट के घोल का हल्का छिडकाव करके मजबूती प्रदान की जाती है।

दस्तावेजों की मार्किगंः-
विवादित प्रलेखों को लाल रंग की पेंसिल से घेर कर Q1, Q2, Q3………क्रम तथा नमूने के प्रलेखों को नीले रंग की पेंसिल द्वारा घेर कर S1, S2, S3, ………क्रम, एवं स्वीकृत लेखो को भी नीले रंग की पेंसिल द्वारा घेर कर ।A1, A2, A3………क्रम मे अंकित करके अलग अलग लिफापो में रखना चाहिए। प्रलेख विशेषज्ञों को केवल सम्बन्धित प्रलेख ही भेजने चाहिए, पूरी फाईल, फालतू कागज नही भेजने चाहिए। अन्वेषक द्वारा परीक्षण सम्बन्घी प्रश्न स्पष्ट व सही तरीके से विवेचना के आधार पर पूछने चाहिए। विधि विज्ञान प्रयोगशाला के प्रलेख अनुभाग में प्रलेख से सम्बन्धित कुछ परीक्षण नही किये जा सकते है जैसेः-

  1. किसी प्रलेख की निश्चित आयु मालूम नही की जा सकती है।
  2. ट्रेस किये गये हस्तलेख/हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति के बारे में नही कहा जा सकता है।
  3. धीमी और अल्पलेख/हस्ताक्षर के बारे में राय व्यक्त करना कठिन हो सकता है।
  4. कम्पयूटर प्रिन्ट के टाईपिस्ट की पहचान के बारे में।
  5. फोटोस्टेट कापी या फैक्स संदेश से सम्बन्धित व्यक्ति के हस्ताक्षर/ लेख के बारे में।

जालसाजी के विभिन्न प्रकार

  1. नकल द्वारा (Imitation/ Simulation)
  2. हस्ताक्षरों की ट्रेसिंग( Tracing ).
  3. असली हस्ताक्षर का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रतिरोपण ( Transplantation).
  4. असली हस्ताक्षर के ऊपर बिना ज्ञान के जालसाजी करना।
  5. प्रलेखों/लेखों में परिवर्तन- मूल लेख मे कुछ लेख जोड देना या पन्ना बदल देना।
  6. दो लाईनों के मध्य कुछ और लेख बढा देना (Interpolation/Additions )
  7. मूल लेखो को मिटाकर अन्य लेख/टाईप लेख लिख देना (Erasures)
  8. मूल लेख को काटकर अथवा स्याही इत्यादि गिराकर छुपादेना (Obliterations )
  9. सील्ड लिफाफे/बंडल को खेलकर सील बदल देना अथवा मूल सील को ध्यान पूर्वक हटाकर पुनः स्थापित कर देना।
  10. प्रलेख मे किसी भी प्रकार के मिटाए गए लेख ( जैसे- खुरच कर या रगड कर मिटाए गये लेख अथवा रसायनों के प्रयोग द्वारा मिटाए गए लेख)।
  11. दस्तावेज मे गुप्त लिखावट द्वारा संदेश भेजना ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *