पाॅलीग्राफ (लाई डिटेक्टर)

परिचय-

पाॅलीग्राफ जिसे सामान्यतः लाई डिटेक्टर भी कहा जाता है एक ऐसी युक्ति/उपकरण है जो किसी अपराध से सम्बंधित संदिग्ध व्यक्ति से प्रश्न (पूछताछ) करने पर उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं जैसे रक्तचाप, नाडीस्पंदन, श्वसन, त्वचा की चालकता आदि का मापन करता है और उसका अभिलेख रखता है। एक समय में एक से अधिक शारीरिक प्रतिक्रियाओं का ब्यौरा संकलित करने के कारण ही इस युक्ति को पाॅलीगा्रफ कहा जाता है। वास्तव में पाॅलीग्राफ अपराधी से प्रश्न करते समय उसके तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रियाओं द्वारा किये जाने वाले शारीरिक परिवर्तनों को एकत्रित कर उसका रिकाॅर्ड रखता है। वर्ष 1885 में सीजर लोम्ब्रासों नाम के वैज्ञानिक द्वारा आपराधिक मामलों में संदिग्ध/अपराधी के रक्तचाप के परिवर्तन देखने में किया गया। वर्ष 1914 में विट्टोरियो बेनुसी द्वारा इस युक्ति का प्रयोग श्वसन प्रतिक्रिया को मापने में तथा अमेरिकन विलियम मार्टसन द्वारा जर्मन कैदियों के रक्तचाप एवं त्वचा उत्प्रेरण प्रतिक्रिया को मापने में किया गया। वर्ष 1920 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के डाॅ0 जाॅन ए0 लारसन द्वारा रक्तचाप एवं त्वचा उत्प्रेरण प्रतिक्रिया को मापने वाली एक संयुक्त युक्ति तैयार कर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में पुलिस के प्रयोग हेतु परिचय कराया गया। पाॅलीग्राफ के प्रयोग के तरीके और इसकी वैधता आलोचनात्मक एवं विवादास्पद रही है। यदि यह परीक्षण ऐसे विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है जो ठीक प्रकार से प्रशिक्षित नही है अथवा इस तकनीक का सही प्रकार से अनुप्रयोग नही कर पा रहा है तो परीक्षण के परिणामों में भिन्नता आती है और परिशुद्ध परिणाम प्राप्त नही हो पाते हैं।

परीक्षण प्रक्रिया

पाॅलीग्राफ परीक्षण प्रारम्भ करने से पूर्व विशेषज्ञ को एक प्रारम्भिक परीक्षण करना होता है जिसमें संदिग्ध व्यक्ति का परीक्षण-पूर्व साक्षात्कार लिया जाता है। इस परीक्षण में कुछ मानक प्रश्न पूछे जाते हैं जिनसे परीक्षण किये जाने वाले व्यक्ति को विश्वास दिलाया जा सके कि पाॅलीग्राफ उपकरण झूठ पकडने में पूर्ण सक्षम है। उदाहरणार्थ- उस व्यक्ति से उसका गलत नाम बताकर पूछा जाये कि क्या वह नाम उसका है तथा पुनः सही नाम पूछकर दोनों में उपकरण द्वारा संकलित किये गये परिवर्तनों को बताकर व्यक्ति को विश्वास दिलाया जाता है कि उसका झूठ उपकरण द्वारा नोट किया गया है। उक्त परीक्षण में विशेषज्ञ की भूमिका भी अहम होती है। मानक प्रश्न परीक्षण पूछताछ प्रक्रिया में उचित मानकों के तहत किया जाता है। जब व्यक्ति किसी सत्य बात को छिपाने का प्रयास करता है तो तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रिया को छिपाते हुए भ्रमित करने का प्रयास करता है तथा सत्य को असत्य में परिवर्तित करता है। परन्तु उसके शरीर में हुई इस प्रतिक्रिया को पाॅलीगा्रफ द्वारा दर्ज कर लिया जाता है। सम्पूर्ण परीक्षण प्रक्रिया निम्न परीक्षणों पर आधारित होती है-

  1. तुलनात्माक प्रश्न परीक्षण
  2. गुप्त सूचनाओं का परीक्षण
  3. उच्च तनाव परीक्षण
  4. प्रत्यक्ष झूठ परीक्षण
  5. दोष ज्ञान परीक्षण
  6. पुनरावर्तित निश्चयात्मक परीक्षण

विभिन्न शारीरिक प्रतिक्रियाओं को दर्शाते हुए ग्राफ

पाॅलीग्राॅफ के परिणाम


विशेषज्ञ द्वारा पाॅलीग्राफ परीक्षण के पश्चात् निर्णायक अभिमत निम्न पर तैयार किया जाता है-

  1. झूठ/कपट पाया गया।
  2. सत्य बोलना पाया गया।
  3. परिणाम अनिश्यात्मक रहे।

पाॅलीग्राफ का महत्व-

  1. यह पूछताछ की एक सहज विधि है जिसमें संदिग्ध को शारीरिक/मानसिक हानि पहंचाये बिना पूछताछ की जा सकती है।
  2. एक से अधिक संदिग्ध होने पर परख करने में सुविधा होती है।
  3. शिकायतकर्ता और गवाह दोनों से ही सटीक पूछताछ की जा सकती है।

विश्वसनीयता-


पाॅलीग्राफ की विश्वसनीयता के समर्थन में बहुत कम ही वैज्ञानिक साक्ष्य है। पाॅलीग्राफ की विश्वसनीयता आलोचनात्मक एवं विवादास्पद है। वर्तमान में पाॅलीग्राफ साक्ष्य न्यायालय की दृष्टि में स्वीकार्य नही हैं। वर्ष 1997 के एक सर्वेक्षण में 421 मनोवैज्ञानिकों द्वारा पाॅलीग्राफ की परिशुद्धता को 61 प्रतिशत पाया गया। इसका अर्थ होता है कि पाॅलीग्राफ साक्ष्य भले ही न्यायालय द्वारा स्वीकार्य नही हैं परन्तु पूछताछ में इसके धनात्मक परिणाम हो सकते हैं।
आवाज मे तनाव का विश्लेषण झूठ को पहचानने वाली एक नई तकनीकी है जो पाॅलीग्राफ से भी अधिक विकसित है। डिटेक्शन आफ डिसेप्शन में सम्बंधित प्रश्न पूछे जाने पर आवाज में तनाव/प्रतिबल आ जाता है जिसके शारीरिक तनाव या डिसेप्टिव तनाव कहा जाता है।

संदिग्ध/अपराधी का पाॅलीग्राफ परीक्षण कराने हेतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा निर्देश-


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा पाॅलीग्राॅफ परीक्षण को जबरन या बिना सहमति के कराये जाने की शिकायतें प्राप्त हुई हैं। वर्तमान पुलिस पद्धति पाॅलीग्राफ परीक्षण को करने के लिए कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नही है जो किसी मार्गदर्शन के अंतर्गत नही किया जाता है। यह परीक्षण अपराधी/संदिग्ध को अपने ही विरूद्ध साक्ष्य बनने के लिए बाध्य करता है जो कि संवैधानिक नही है। संदिग्ध/अपराधी की स्वेच्छा पूर्वक सहमति से ही यह परीक्षण कराया जाना ही न्यायोचित होगा।

मानवाधिकार आयोग द्वारा उक्त परीक्षण कराये जाने हेतु निम्नलिखित दिशा निर्देश जारी किये गये हैं-

  1. बिना अपराधी/संदिग्ध की सहमति के पाॅलीग्राफ परीक्षण नही कराया जाना चाहिये और उसको उक्त परीक्षण कराये जाने हेतु विकल्प दिया जाना चाहिये कि क्या वह यह परीक्षण करवाये जाने मे अपनी सहमति प्रकट करता है ?
  2. यदि अपराधी/संदिग्ध उक्त परीक्षण कराये जाने हेतु स्वेच्छा से सहमति प्रकट करता है तो उसे अपने अधिवक्ता से परामर्श करने का अवसर दिया जाना चाहिये तथा पुलिस/अधिवक्ता द्वारा परीक्षण के शारीरिक, भावनात्मक और वैधानिक आशय स्पष्ट कर देने चाहिये।
  3. मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी सहमति को अभिलेखित किया जाना चाहिये।
  4. सुनवाई के समय न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराधी/संदिग्ध की सहमति उसके अधिवक्ता की उपस्थिति में प्रस्तुत की जानी चाहिये।
  5. सुनवाई के समय उक्त व्यक्ति को स्पष्ट शब्दों में यह कहा जाना चाहिये कि यह वकतव्य मजिस्ट्रेट के सामने स्वीकारात्मक वकतव्य नही होकर पुलिस के सामने दिया गया वकतव्य माना जायेगा।
  6. मजिस्ट्रेट को अवरोधन व अवरोधन की समय सीमा तथा पूछताछ के प्रकार के सभी कारकों को ध्यान में रखना चाहिये।
  7. पाॅलीग्राफ परीक्षण एक अधिवक्ता की उपस्थिति में एक स्वतंत्र एजेन्सी द्वारा किया जाना चाहिये।
  8. परीक्षण के दौरान पूर्ण रूप से चिकित्सीय तथा प्राप्त की गई सूचनाओं का तथ्यपूर्ण वर्णन अभिलेखित किया जाना चाहिये।

विधि विज्ञान प्रयोगशाला में संदिग्ध/अपराधी व्यक्ति का पाॅलीग्राफ परीक्षण कराये जाने से पूर्व की जाने वाली प्रक्रिया हेतु मार्गदर्शन-

  1. संदिग्ध व्यक्ति से स्वेच्छा से परीक्षण हेतु लिखित रूप में सहमति प्राप्त कर लें।
  2. सम्बंधित न्यायालय से विधि विज्ञान प्रयोगशाला में उक्त परीक्षण कराये जाने हेतु स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिये।
  3. यदि संदिग्ध व्यक्ति पहले ही न्यायिक/पुलिस अभिरक्षा में हो तो संदिग्ध व्यक्ति को प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु ले जाने से पूर्व न्यायालय की अनुमति प्राप्त कर लें।
  4. विधि विज्ञान प्रयोगशाला के मनोवैज्ञानिक अनुभाग में संदिग्ध व्यक्ति को परीक्षण हेतु भेजे जाने से पूर्व, निदेशक को पत्र सम्बोधित करें।
  5. सभी आवश्यक दस्तावेज जैसे कि प्रथम सूचना रिपोर्ट, पोस्टमोर्टम रिपोर्ट आदि की प्रमाणित छायाप्रतियां अग्रसारण पत्र के साथ संलग्न कर भेजना चाहिये।
  6. अपराध से सम्बंधित फोटोग्राफ एवं घटनास्थल के चित्रण या मृतक का फोटोग्राफ इत्यादि भी अग्रसारण पत्र के साथ संलग्न करें।
  7. अपराध से सम्बंधित सभी संभावनाओं की प्रयोगशाला के विशेषज्ञ से चर्चा कर लें।
  8. प्रयोगशाला में संदिग्ध व्यक्ति का परीक्षण कानूनी सलाहकार के समक्ष करवा लेना चाहिये।
  9. संदिग्ध व्यक्ति के परीक्षण से पूर्व एवं परीक्षण के पश्चात् विशेषज्ञ से परामर्श कर लें।
  10. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा न्यायालयिक विज्ञान निदेशालय के मार्गदर्शन का अनुसरण करें।

पाॅलीग्राफ (लाई डिटेक्शन) परीक्षण हेतु संदर्भित कुछ प्रयोगशालाऐं-

Sr. No.LaboratoryContact No.Fax No.
1State Forensic Science Laboratory Madiwala, Banglore-560068080 25532910
080 22942386
080 25274706
2State Forensic Science Laboratory, Behind Police Bhawan, Sector 18A, Gandhi Nagar, Gujrat079 23256250
079 26407513
079 23256251
3State Forensic Science Laboratory Hans Bhugra Marg, Santacruz (E), Vidyanagari, Mumbai- 400098022 26670760022 26670844
4Central Forensic Science Laboratory, Central Bureau of Investigation,
 Block 4, CGO Complex, Lodi Road
, New Delhi.
011 24361396
011 24360334
email-dcfsl@cbi.nic.in
011 24364130

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